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विश्व के कुल भारी पानी (D20) उत्पादन का 90% से भी अधिक उत्पादन हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) जल (H20) विनिमय प्रक्रिया, जिसे जीएस प्रक्रिया के नाम से जाना जाता है, के माध्यम से किया जाता है जिसमें प्रमुख योगदान कनाडा के संयंत्रों का रहा है। कोटा स्थित भारी पानी संयंत्र पूर्णत: स्वदेशी प्रयास है और H20-H2S द्वितापीय विनिमय प्रक्रिया पर आधारित है। यह संयंत्र कोटा रेल्वे स्टेशन से 65 किमी दूर, राजस्थान परमाणु बिजलीघर (आरएपीपी) के समीप स्थित है। भारी पानी संयंत्र अपनी ऊर्जा और वाष्प की आपूर्ति के लिए आरएपीपी से जुड़ा हुआ है।
पास के राणाप्रताप सागर झील से पानी लिया जाता है और उसमें से निलंबित और घुली हुई अशुद्धियों को दूर करके उसे प्रक्रिया फीड बनाया जाता है जिसे H2S के रासायनिक विनिमय द्वारा 150 पीपीएम (0.015%) से 15% तक D20 संवर्धित किया जाता है तथा इसके निर्वात आसवन द्वारा 99.8% D20्पादन किया जाता है। विनिमय इकाई 3 चरणीय कैस्केड में व्यवस्थित है। पहले चरण में बड़ी मात्रा में प्रोसेस वाटर और H2S गैस को संभालने वाले तीन जोड़े कोल्ड और हॉट टॉवर होते हैं जो क्रमश: 30 डिग्री 130 डि.से. पर प्रचालित होते हैं। दूसरे और तीसरे चरण में प्रत्येक में एक जोड़ी कोल्ड और हॉट टॉवर होते हैं। शुद्ध पानी पहले चरण के ठंडे टॉवर के शीर्ष में प्रवेश करता है और नीचे की ओर जाता है जबकि टॉवर के निचले भाग से प्रवेश करने वाली हाइड्रोजन सल्फाइड गैस ऊपर की ओर जाते समय टॉवर इंटर्नल पर पानी से मिलती है और ड्यूटेरियम का विनिमय होता है। कोल्ड टॉवर में पानी ड्यूटेरियम से संवर्धित हो जाता है, जबकि गैस में ड्यूटेरियम की सांद्रता कम हो जाती है। गर्म टॉवर में इसके विपरीत प्रक्रिया होती है यानि द्रव के बजाय गैस संवर्धित हो जाती है। टॉवरों की एक जोड़ी में, बंद सर्किट में गैस के साथ द्रव और गैस प्रवाह की उचित दर से, शुद्ध उत्पाद के रूप में कोल्ड टॉवर के नीचे से संवर्धित द्रव की थोड़ी मात्रा प्राप्त की जा सकती है। इसे आगे दूसरे और तीसरे चरण में इसी तरह संवर्धित किया जाता है। पहले चरण से आने वाले हॉट टॉवर बॉटम्स लिक्विड को दो भागों में बांटा गया है।
एक भाग को ऊष्मा पुनर्प्राप्ति के लिए, गर्म टॉवर के तल पर स्थित आर्द्रीकरण खंड के शीर्ष पर पुनर्चक्रित किया जाता है, जबकि दूसरा भाग अपशिष्ट का निर्माण करता है। अपशिष्ट को पर्यावरण में छोड़ने से पहले, इसमें घुली हुई H2S की पुनर्प्राप्ति करना आवश्यक है। इस प्रयोजन के लिए, प्रत्यक्ष वाष्प स्ट्रिपिंग द्वारा H2S को स्ट्रिप करने हेतु एक वेस्ट स्ट्रिपर लगाया गया है तथा उत्पन्न गैस और वाष्प को पहले चरण के गर्म टावरों में वापस भेजा जाता है। तीसरे चरण से संवर्धित पानी को एक उत्पाद स्ट्रिपर में उसकी H2S से अलग कर दिया जाता है और नाभिकीय ग्रेड तक संवर्धित करने के लिए आसवन इकाई में भेजा जाता है। चूंकि H2S गैस की प्रकृति बहुत जहरीली, संक्षारक और खतरनाक होती है और संयंत्र में 200 Te H2S गतिशील रूप से उपस्थित रहती है अत: संयंत्र के डिजाइन, उपकरणों और सामग्री के चयन, कड़ी निर्माण प्रक्रियाओं और कोडों का पालन करने में अत्यधिक सावधानी बरती गई है। विनिमय प्रक्रिया लगभग 20 atm दबाव पर और 30 से 120 डिग्री के तापमान पर प्रचालित होती है जबकि निर्वात आसवन संयंत्र 100 मिमी Hg के निरपेक्ष दबाव पर काम करता है। आइसोटोपिक विनिमय अभिक्रिया, जोकि इस तकनीक प्राण तत्व है, को विशेष रूप से डिजाइन की गईं ट्रे की सहायता से पूरा किया जाता है। प्रक्रिया के लिए आवश्यक H2S गैस को, संयंत्र परिसर में, एक अलग इकाई में, सोडियम सल्फाइड और सल्फ्यूरिक एसिड के बीच रासायनिक अभिक्रिया द्वारा निर्मित किया जाता है। न केवल संयंत्र में बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी पर्यावरण की निगरानी के लिए बहुत विस्तृत और संवेदनशील H2S संसूचन उपकरण लगाए गए हैं।
प्रक्रिया फीड | H2S - H2O Exchange |
संयंत्र की क्षमता | 80 MT / Year |
कमिशनिंग की तिथि | 1-4-1985 |
संयंत्र का क्षेत्रफल | 20 Hectares |
प्रचालन दाब | 20 Kg/Cm 2 |
ऊर्जा खपत | 360 MWH/Day |
पानी खपत | 32400 M 3 /Day |
वाष्प खपत | 2640 MT/Day |
Last updated on: 16-Apr-2019